द गोट लाइफ 👇
डायरेक्टर : ब्लेसीश्रेणी:Malayalam,Hindi,Telugu,Tamil,Kannada, Adventure, Dramaअवधि:2 Hrs 53 Min
'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट' यानी अस्तित्व के लिए जंग और सर्वश्रेष्ठ का बचे रहना। इस अवधारणा से हम सभी वाकिफ हैं, मगर जब भी किस्से-कहानियों या फिल्मों में किसी चरित्र को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते और उसमें जीतते देखते हैं, तो मर जाने वाले हालात में जीवन जीने की बड़ी हिम्मत मिलती है। साउथ के जाने-माने निर्देशक ब्लेसी 'आडुजीवितम- द गोट लाइफ' के रूप में सत्य घटना पर आधारित ऐसी ही फिल्म लेकर आए हैं।
मूलरूप से मलयालम में बनी यह फिल्म हिंदी, तमिल, तेलुगू और कन्नड़ भाषा में भी सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। ये पहली बार नहीं है, जब कोई सर्वाइवल वाली कहानी पर्दे पर आई हो, मगर निर्देशक ब्लेसी बेशक दाद के काबिल हैं, जो उन्होंने नजीब मोहम्मद की असल जिंदगी की कहानी को पर्दे पर पूरी सचाई के साथ पेश किया है। हालात ने नजीब को खाड़ी देश में तीन साल तक गुलाम बना कर रखा और उस दौरान उसने जो यातनाएं झेलीं, वो दिल को दहला देने वाली थीं। लेकिन अब एक बात सुकून देती है कि नजीब हमारे बीच जिंदा हैं।
'द गोट लाइफ' की कहानी
कहानी है केरल के मोहम्मद नजीब (पृथ्वीराज सुकुमारन), उसकी पत्नी सैनु (अमला पॉल) और उसकी मां (शोभा मोहन) की। पांच क्लास तक पढ़ा नजीब अपने अपरिवार का गुजारा करने के लिए रेत की मजदूरी करता है, मगर परिवार और अपने आने वाले बच्चे को बेहतर जिंदगी देने के लिए वह खाड़ी देश जाकर पैसे कमाने की सोचता है। Full Movie Download Link:- [click here👇]
नजीब के दोस्त हाकिम को किसी और शिविर में ले जाया जाता है। जबकि उसे खाने के लिए एक रोटी और पीने के लिए भरपूर पानी तक नहीं मिलता। वहां से बच निकलने की कोशिश करने पर उसे डराने के लिए गोलियां बरसाई जाती हैं, मारा-पीटा जाता है, उसका एक पैर टूट जाता है। उनकी भाषा न आने के कारण वो अपनी बात उन्हें समझा नहीं पाता। रेगिस्तान में उसका जीवन जानवरों से भी बदतर हो जाता है, मगर तीन साल उस यातनामय जीवन के बाद जब वो तकरीबन अपने परिवार के साथ-साथ खुद को भी खो चुका है, तब अल्लाह के फरिश्ते की तरह अफ्रीकी गुलाम इब्राहिम कादरी (जिमी जीन लुई) और हाकिम उसे मिलते हैं। उसके बाद कैसे इब्राहिम की मदद से वो उस रेगिस्तान के अत्याचारी जीवन से निकल पाता है? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
'सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट' यानी अस्तित्व के लिए जंग और सर्वश्रेष्ठ का बचे रहना। इस अवधारणा से हम सभी वाकिफ हैं, मगर जब भी किस्से-कहानियों या फिल्मों में किसी चरित्र को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ते और उसमें जीतते देखते हैं, तो मर जाने वाले हालात में जीवन जीने की बड़ी हिम्मत मिलती है। साउथ के जाने-माने निर्देशक ब्लेसी 'आडुजीवितम- द गोट लाइफ' के रूप में सत्य घटना पर आधारित ऐसी ही फिल्म लेकर आए हैं।
मूलरूप से मलयालम में बनी यह फिल्म हिंदी, तमिल, तेलुगू और कन्नड़ भाषा में भी सिनेमाघरों में रिलीज हुई है। ये पहली बार नहीं है, जब कोई सर्वाइवल वाली कहानी पर्दे पर आई हो, मगर निर्देशक ब्लेसी बेशक दाद के काबिल हैं, जो उन्होंने नजीब मोहम्मद की असल जिंदगी की कहानी को पर्दे पर पूरी सचाई के साथ पेश किया है। हालात ने नजीब को खाड़ी देश में तीन साल तक गुलाम बना कर रखा और उस दौरान उसने जो यातनाएं झेलीं, वो दिल को दहला देने वाली थीं। लेकिन अब एक बात सुकून देती है कि नजीब हमारे बीच जिंदा हैं।
'द गोट लाइफ' की कहानी
कहानी है केरल के मोहम्मद नजीब (पृथ्वीराज सुकुमारन), उसकी पत्नी सैनु (अमला पॉल) और उसकी मां (शोभा मोहन) की। पांच क्लास तक पढ़ा नजीब अपने अपरिवार का गुजारा करने के लिए रेत की मजदूरी करता है, मगर परिवार और अपने आने वाले बच्चे को बेहतर जिंदगी देने के लिए वह खाड़ी देश जाकर पैसे कमाने की सोचता है। Full Movie Download Link:- [click here👇]टिकट और वीजा का इंतजाम करने के लिए वह अपना घर गिरवी रख देता है। वह सऊदी अरब पहुंच तो जाता है, मगर खुद को रेगिस्तान के बीच भेड़ और ऊंटों की देखभाल करने वाले एक गुलाम के रूप में पाता है। असल में वह एयरपोर्ट पर गलत प्रायोजक के साथ चला गया था, जिसके फलस्वरूप अब वो चरवाहे के रूप में एक गुलाम है। नजीब के साथ उसका दोस्त हाकिम (केआर गोकुल) भी है। बस वहीं से उसके जीवन की भयानक दास्तान की शुरू होती है।
नजीब के दोस्त हाकिम को किसी और शिविर में ले जाया जाता है। जबकि उसे खाने के लिए एक रोटी और पीने के लिए भरपूर पानी तक नहीं मिलता। वहां से बच निकलने की कोशिश करने पर उसे डराने के लिए गोलियां बरसाई जाती हैं, मारा-पीटा जाता है, उसका एक पैर टूट जाता है। उनकी भाषा न आने के कारण वो अपनी बात उन्हें समझा नहीं पाता। रेगिस्तान में उसका जीवन जानवरों से भी बदतर हो जाता है, मगर तीन साल उस यातनामय जीवन के बाद जब वो तकरीबन अपने परिवार के साथ-साथ खुद को भी खो चुका है, तब अल्लाह के फरिश्ते की तरह अफ्रीकी गुलाम इब्राहिम कादरी (जिमी जीन लुई) और हाकिम उसे मिलते हैं। उसके बाद कैसे इब्राहिम की मदद से वो उस रेगिस्तान के अत्याचारी जीवन से निकल पाता है? यह जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
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'द गोट लाइफ' मूवी रिव्यू
निसंदेह ब्लेसी निर्देशक के रूप में एक बेहद चुनौतीपूर्ण कहानी का चुनाव करते हैं, जिसे उन्हें मानवीय यातना और करुणा के साथ-साथ रेगिस्तान में फिल्माना था, मगर मानना पड़ेगा कि वे इस सच्ची कहानी को अपने विशिष्ट ट्रीटमेंट से पर्दे पर जीवंत कर देते हैं। एक खुशमिजाज और प्यार में डूबे युवा नजीब से लेकर नर कंकाल बन चुके दयनीय नजीब तक के ट्रांसफॉर्मेशन में उन्होंने कोई जल्दबाजी नहीं की है।
कई दृश्यों में ब्लेसी दर्शकों के अंतर्मन तक उतर जाते हैं। केरल के निश्छल पानी में पत्नी के साथ प्यार की पींगे बढ़ाते नजीब का आक्रांत कर देने वाले रेगिस्तान में होना, भेड़-ऊंटों के साथ नजीब का रिश्ता, सालों बाद नजीब को नहाने का मौका मिलने पर उसक नग्न होकर जाना, पत्नी के बनाए अचार को तीन साल तक चलाना, भागने की कोशिश में नजीब, हाकिम और इब्राहिम की जद्दोजहद जैसे कई दृश्य बेहद मार्मिक बन पड़े हैं। कहानी के माध्यम से ब्लेसी ये बताना नहीं भूलते कि कई बार सपनों को पूरा करने की चाह में अप्रवासी अपना सब कुछ खो देते हैं।
फिल्म में सऊदी अरब के किरदारों द्वारा बोले गए कई संवादों को सब टाइटल नहीं दिया गया है। शायद मेकर की कोशिश यह रही हो कि किरदार जिस तरह से भाषा को ना समझने की परेशानी से जूझ रहा है, उसे दर्शक भी महसूस कर सके। हां, 2 घंटे 53 मिनट की लंबाई उस पॉइंट पर आकर परेशान करती है, जब दूसरे भाग में कहानी में दोहराव नजर आता है। मगर सुनील केएस और केयू मोहनन की सिनेमैटोग्राफी फिल्म के कई दृश्यों को शानदार बना ले जाती है। सिनेमैटोग्राफर ने केरल के बैकवाटर और रेगिस्तान को बेहद कलात्मक ढंग से फिल्माया गया है।
संगीत की बात की जाए, तो एआर रहमान ने अपने म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर में अरबी, भारतीय और इस्लामी शैलियों का खूबसूरत संगम कर जान डाल दी है।
एक्टिंग के मामले में पृथ्वीराज सुकुमारन अव्वल साबित होते हैं। अगर ये कहा जाए कि उन्होंने असाधारण अभिनय किया है, तो अतिशयोक्ति न होगी। रोमांटिक नजीब के बाद जानवर-सा बन गया झबरे बाल, गंदे दांत और काले नाखून वाला लंगड़ाता भिखारी-सा नजीब, उनका यह अस्थिपिंजर वाला रूप न केवल आश्चर्य पैदा करता है, बल्कि कई जगहों पर आंखें नम कर देता है। अमला पॉल का किरदार छोटा है, मगर वे अपने अभिनय और खूबसूरती से इंटेंस कहानी में राहत देने का काम करती हैं। हाकिम के रोल में के आर गोकुल भावुक कर ले जाते हैं। इब्राहिम कादरी के चरित्र में जिमी जीन लुई वाकई खुदा के बंदे प्रतीत होते हैं। कफील बने तालिब और जैसर बने रिक एबी ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है।
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